मै पार करूं किस सीमा को,
फिर पहुचूँ मै किस गतिविधि पर?
जहा विराजू शांत चित्त
हो मुखर जहा पर कर्म मेरा|
वह कर्म जो विदित नहीं सबको
बस वही बने अब धर्म मेरा|
कोई कारण न पूछे मुझसे
बस बहने दे उच्छंकृल हो|
पुकार मेरी आलाप बने या गीत बने
बस कहने दो|
मै हर रेखा को तोड़ सकूँ या पार करूँ उस सीमा को
जो झिलमिल झिलमिल तारे हैं बस याद करू उनके घर को.
पहचाना सबने मुझको पर जान सके वह बात नहीं
सपने मेरे ओछे मानो कोई मान सके, यह पाक़ नहीं|
मै उस आँगन की रखवाला जो मूंदे न उन आँखों को,
जो मुंद गई मेरी आँखें पहचानूँ न मै किसी मन को|
मै चाहूँ कही विलुप्त रहूँ, कही छुपू कही गुप्त रहूँ|
बस नश्वर हूँ नश्वर ही रहूँ|
तुम अपनी रसना बंजारे जब नाम मेरा गोहराना,
मै पास तुम्हारे रहूंगी कही विचलित न हो जाना |
मै चाहूँगी तुम विष भी हो तो भी बस आनंद विहार करू,
जो मेरे सपनों का आँगन उसमे तुमको आश्रय मै दूँ|
मै साधारण पर असाध्य हूँ,
तुम हो नवीन एक मित्र मेरे|
यह सुनो जो मैंने सोचा है कि आज जलूँ समीप तेरे|
कल शायद यह घर टूट चले, शायद सपने यह रूठ चलें|
क्यों तुमको न मै दर्पण दूँ, अपना हर गीत समर्पण दूँ|
यह ह्रदय ने बोला है सखा तुम जान सको तो जान भी लो,
मै चली हूँ जीने इक सपना, मै कहती हूँ तुम भी चल लो|
उन छोटे ख़ुशी के तारों में एक संमरमर का पत्थर होगा|
जिसपर हम बैठे ठिठोल करे सब चन्दन चन्दन होगा|
चलो सीमा के पार चले, जहा सुकूँ उस द्वार चले|
चलो सीमा के पार चलें|
उम्दा :)
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