लोग आवाज़ उठा रहे हैं।
मुझ पर, तुम पर हर शख़्स पर आवाज़ उठा रहे हैं।
गर्म चाय पर, नर्म कुर्सी पर फिरसे कुछ लोग बात उठा रहे हैं।
बिना शहर की हवा खाए लोग फिरसे,
अंदर ही अंदर स्वांग रचा रहे हैं।
जहाँ बाहर लोग कदम बढ़ा रहे हैं,
सरहद पर जान लुटा रहे हैं,
बुद्धिजीवी कलम उठा रहे हैं।
वहीं कमरे की गर्मी में,
सोफ़े की नर्मी में लोग चर्चा बैठा रहे हैं।
सब पर उंगली उठा रहे हैं।
बिना बात की बात बढ़ा रहे हैं।
लोग कमरों में बिना मतलब के चिल्ला रहे हैं ।
मुझ पर, तुम पर हर शख़्स पर आवाज़ उठा रहे हैं।
गर्म चाय पर, नर्म कुर्सी पर फिरसे कुछ लोग बात उठा रहे हैं।
बिना शहर की हवा खाए लोग फिरसे,
अंदर ही अंदर स्वांग रचा रहे हैं।
जहाँ बाहर लोग कदम बढ़ा रहे हैं,
सरहद पर जान लुटा रहे हैं,
बुद्धिजीवी कलम उठा रहे हैं।
वहीं कमरे की गर्मी में,
सोफ़े की नर्मी में लोग चर्चा बैठा रहे हैं।
सब पर उंगली उठा रहे हैं।
बिना बात की बात बढ़ा रहे हैं।
लोग कमरों में बिना मतलब के चिल्ला रहे हैं ।
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