वह एक छंद जो बिखर गया था आज भी कुछ अश्रुओं से भीगा है,
इसी दौरान जो गीत लिख गए उस पर कबसे मोर नाच रहे हैं।
वह एक छंद जो बिथर गया था,
पता नही किस किस का गीत बन गया होगा,
मेरे गीत मेरे नही बन पा रहे, कबसे पंथ निहार रहे हैं,
पर मेरा मौन भी अग्रेषित हो चुका है।
भाव भंगिमा की ऊष्मता मेरे शब्दों की शालीनता पर प्रश्न उठाये जा रहे हैं,
गीत बिखरे जा रहे हैं,
मोर नाचे जा रहे हैं।
निशब्द से हम बस उस खोज को निहार रहे हैं जो आज तक अस्तित्वविहीन रही है।
आँखें कुछ चंचल मग्न सी खोज में खो गई हैं।
शायद एक खोया सा छंद मिल जाए।
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