हमने सोचा है अब किरदार निभाएँगे,
मोहब्बत हम भी थोड़ी माँगेंगे,
इबादत करते जाएँगे।
सजदे कर लेंगे हम भी,
थोड़ा सा चाँद हम भी मनाएँगे।
पर अल्लाह क्या बस दुआओं पर जाएँगे,
या फिर थोड़ा दिल तक ग़ौर फरमाएंगे ?
क्या हर बदलते वक़्त का वो हिसाब रखते हैं,
या हम ही अब हिसाब की किताब बनाएँगे।
सोच लिया अब हमने,
बेवक़्त ही वक़्त के ग़ुलाम बनते जाएँगे।
गुरेज़ हमारे रहन को नही है,
ग़र्ज़ तुम्हारे ज़हन में नही है ।
अब हम भी धीमी धीमी आँच बनते जाएँगे,
रोशनी तुम रखना,
हम बस जलते जाएँगे।
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