इसे तुम बात कहोगे या इत्तेफ़ाक़ कहोगे,
या महज़ एक बिखरी हुई रात कहोगे ।
धड़कन है, बढ़ जाती है,
अब क्या तुम इसे भी खुद की बातों की तरह बेधड़क, बेहिसाब कहोगे?
बताओ तुम,
मैं फूल कहूँ तो क्या तुम सिर्फ़ ग़ुलाब कहोगे?
मैं रोशनी कहूँ तो क्या सिर्फ़ महताब कहोगे?
तुम तो कुछ भी कह देते हो न?
बताओ फिर कितने ऊँचे हो तुम,
कितनी गहरी है तुम्हारी सोच,
तुम कहते हो तुम प्रेम में हो न?
पूछते भी हो कि मैं किस मिट्टी की हूँ जो प्रेम छुआ नही है।
यदि मैं कह दूँ कि मैं उसी कृष्ण की कृष्णा हूँ,
क्या तुम इस बात को भी दंभ में बस एक स्वांग या ख़्वाब कहोगे?
अग़र ऐसा है तो सुनो,
एक दिन तुम ही किसी पन्ने पर मुझे लिखोगे।
और मुझे प्रेम का इतिहास कहोगे।
या महज़ एक बिखरी हुई रात कहोगे ।
धड़कन है, बढ़ जाती है,
अब क्या तुम इसे भी खुद की बातों की तरह बेधड़क, बेहिसाब कहोगे?
बताओ तुम,
मैं फूल कहूँ तो क्या तुम सिर्फ़ ग़ुलाब कहोगे?
मैं रोशनी कहूँ तो क्या सिर्फ़ महताब कहोगे?
तुम तो कुछ भी कह देते हो न?
बताओ फिर कितने ऊँचे हो तुम,
कितनी गहरी है तुम्हारी सोच,
तुम कहते हो तुम प्रेम में हो न?
पूछते भी हो कि मैं किस मिट्टी की हूँ जो प्रेम छुआ नही है।
यदि मैं कह दूँ कि मैं उसी कृष्ण की कृष्णा हूँ,
क्या तुम इस बात को भी दंभ में बस एक स्वांग या ख़्वाब कहोगे?
अग़र ऐसा है तो सुनो,
एक दिन तुम ही किसी पन्ने पर मुझे लिखोगे।
और मुझे प्रेम का इतिहास कहोगे।
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