हाँ मैंने,
जहाँ कृष्ण नही कुछ कर पाए वहाँ कर्ण को करते देखा है।
सब रक्त के प्यासे युद्ध भूमि में,
उसे हँसते हँसते जाते देखा है।
सब लड़ते लड़ते थके नही,
उसे त्याग निभाते देखा है।
सूर्यपुत्र को सूतपुत्र का भार उठाते देखा है ।
जब कौरव थे पांडव से घृणित,
सबको कर्ण विरह पर साथ में रोते देखा है।
मैंने अनुजों को रोते देखा है,
मैंने एक मित्र को बिलखते देखा है,
दो माताओं को उस देह को गोद में रखते देखा है।
देवों को और गुरुओं को आशीष लुटाते देखा है।
जो कृष्ण नही थे कर पाए,
वो कर्ण को करते देखा है।
दोनों पक्षों को साथ में,
कुरुक्षेत्र में रोते देखा है।
जहाँ कृष्ण नही कुछ कर पाए वहाँ कर्ण को करते देखा है।
सब रक्त के प्यासे युद्ध भूमि में,
उसे हँसते हँसते जाते देखा है।
सब लड़ते लड़ते थके नही,
उसे त्याग निभाते देखा है।
सूर्यपुत्र को सूतपुत्र का भार उठाते देखा है ।
जब कौरव थे पांडव से घृणित,
सबको कर्ण विरह पर साथ में रोते देखा है।
मैंने अनुजों को रोते देखा है,
मैंने एक मित्र को बिलखते देखा है,
दो माताओं को उस देह को गोद में रखते देखा है।
देवों को और गुरुओं को आशीष लुटाते देखा है।
जो कृष्ण नही थे कर पाए,
वो कर्ण को करते देखा है।
दोनों पक्षों को साथ में,
कुरुक्षेत्र में रोते देखा है।
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