भारी ख़्वाबों का बस्ता लेकर,
फूलों से लदा एक रस्ता लेकर।
भीड़ भाड़ में जूझ जूझ कर,
हर मुद्दे पर सूझ बूझ कर,
लहर मुझे बन जाना,
पर कहर उसी ने ढाना है।
कमीज मेरी कुछ बेरंग है,
एक रंग दुपट्टा लाना है।
चहरे की धूल कुछ साफ नही,
उस कपड़े से ही छुपाना है।
जब जेबें भर जाएंगी कभी,
जब ग़ज़लें रास आएंगी कभी ।
तब महफ़िल महफ़िल बात छिड़ेगी,
मेरी तेरी सौगात छिड़ेगी ।
तब बंधन प्रश्न उठाएगा,
जिस ओर चले थे अलग अलग,
हम दोनों को वो बुलाएगा,
पूछेगा कुछ इठला कर,
कुछ गुस्से में, कुछ मुस्का कर।
क्या याद नही वह हँसी के दिन,
कुछ इतराना कुछ पिघलाना।
क्या याद नही संगीत के दिन,
हर अदा का गाना बन जाना।
तब्दील है तू, तसव्वुर में,
थोड़ी मुझमे थोड़ी खुद में।
कुछ प्यारी सी, कुछ तेज़ तरार,
कभी स्थायी, कभी फरार।
तुम अल्लाह हो, तुम गीता भी,
विरह की देवी सीता भी।
तुम टूट के भी बस हो दर्पण,
तेरे हर हिस्से का मैं तर्पण।
तुम रुको नही, मैं ठीक ही हूँ,
तुम छलती रहो मैं ठीक ही हूँ।
फूलों से लदा एक रस्ता लेकर।
भीड़ भाड़ में जूझ जूझ कर,
हर मुद्दे पर सूझ बूझ कर,
लहर मुझे बन जाना,
पर कहर उसी ने ढाना है।
कमीज मेरी कुछ बेरंग है,
एक रंग दुपट्टा लाना है।
चहरे की धूल कुछ साफ नही,
उस कपड़े से ही छुपाना है।
जब जेबें भर जाएंगी कभी,
जब ग़ज़लें रास आएंगी कभी ।
तब महफ़िल महफ़िल बात छिड़ेगी,
मेरी तेरी सौगात छिड़ेगी ।
तब बंधन प्रश्न उठाएगा,
जिस ओर चले थे अलग अलग,
हम दोनों को वो बुलाएगा,
पूछेगा कुछ इठला कर,
कुछ गुस्से में, कुछ मुस्का कर।
क्या याद नही वह हँसी के दिन,
कुछ इतराना कुछ पिघलाना।
क्या याद नही संगीत के दिन,
हर अदा का गाना बन जाना।
तब्दील है तू, तसव्वुर में,
थोड़ी मुझमे थोड़ी खुद में।
कुछ प्यारी सी, कुछ तेज़ तरार,
कभी स्थायी, कभी फरार।
तुम अल्लाह हो, तुम गीता भी,
विरह की देवी सीता भी।
तुम टूट के भी बस हो दर्पण,
तेरे हर हिस्से का मैं तर्पण।
तुम रुको नही, मैं ठीक ही हूँ,
तुम छलती रहो मैं ठीक ही हूँ।
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