blending thoughts
कुछ था जो था मैं वादक शहनाई का।
वादन यूँ ही नही आज शुभ कहलाता है।
दुल्हन के पल्लू से छन कर मैं उससे मिल कर आता हूँ,
यूँही नही हर शादी में तुमको भी नशे में डालता हूँ और
ख़ुद भी मादक हो जाता हूँ।
मैं हर अगले वादन का बाधक हो जाता हूँ।
मैं शहनाई वादक हूँ,
जब भी शहनाई साधता हूँ,
साधक हो जाता हूँ।


कहता तो मैं भी बहुत हूँ,
कि मुझे आज नही बनना वादक।
पर मेरे अधर की प्यास अलग है,
मेरे हाथों का कंपन भी।
मैं बेतहाशा इन सब की औषधि की तरफ दौड़ जाता हूँ।
यूँही नही मैं शहनाई वादक कहलाता हूँ।


 - जन्मदिन पर श्रद्धांजलि उस्ताद जी को ।

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