kitaab

मैंने सोचा है एक किताब लिख दूँ,
जैसे मुझे किताबों ने लिख दिया है,
मै भी किसी किसी को किताबों से लिख दूँ।
जैसे मैं बदलती रही हूँ,
वैसे ही क्रांति लिख दूँ।
मैं तुमको लिखूँ,
मैं हमको लिखूँ।
मैं बस एक किताब लिख दूँ।
पढ़ते पढ़तेे मैं कभी जंगल में थी तो कभी नदी किनारे,
वैसे ही तुमको मैं अपने आसमान में ले चलूँ,
मैं भी कुछ भरी कलम की स्याही को अलविदा कह चलूँ।

मै थक हार कर भी लिखूँ,
सब भूल कर भी लिखूँ।
जो आत्मा की हुई नही,
वह आत्म कथा लिख दूँ।
मैं एक किताब लिख दूँ।

आज मैं शख़्सियत भी किताबी हूँ,
और दुनिया भी मेरी किताबी है।
संभालना ख़ुद को,
बस पन्नों पर रो मत देना,
भीग कर मेरी स्याही बह जाए,
मैं अपने शब्दों की हिसाबी बहुत हूँ।
मैं किताबी बहुत हूँ।

और बस अब इतना ही समझना समझाना था,
इतना ही टहलना और टहलाना था।
चलो अब मैं किताब लिख देती हूँ।
मैं भी दो दुकानों में बिक लेती हूँ।
मैं भी किसी अलमारी में बंद हो जाती हूँ,
या फिर किसी के सीने पर सो लेती हूँ।
मैं पन्नो पर आत्मदाह कर ही देती हूँ।

मैं किताब लिख ही देती हूँ।

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