मैंने कह दिया मै मौन |
फिर उसने पूछा क्यों किया यह मौन धारण ?
मैंने कहा कि यह है उन सब सवालों का पारण |
फिर पूछा गया कैसी यह बात ?
मैंने कहा यह अनकही सौगात |
फिर प्रश्न उठा, क्या खोया जिसको पाना है ?
मेरा उत्तर था पाने का किसने ठाना है |
फिर पूछा क्यों नहीं किसी का साथ ?
बताया मैंने- कि सबने छोड़ा मेरा हाथ |
फिर पूछा कि क्या लगता नहीं डर ?
मैंने कहा सुकून नहीं डर कर |
फिर हताश हो पूछा गया तुमको क्या पाना ?
मैंने कहा जो कभी मिलने नहीं आई उस ख़ुशी के पास जाना |
फिर पूछा गया क्या ध्येय है तुम्हारा ?
मैंने कहा अभी तक तो कुछ नहीं पर कुछ हुआ तो सब श्रेय तुम्हारा |
फिर उसकी चिंता का विषय बनी मै ,
मैंने सहिष्णुता से समझाया कि अलग नहीं उस जैसी हूँ मै |
फिर पूछा कि सहारा लेना है ?
मैंने सकुचाते हुए कहा तुम्हे सहारा देना है ?
अनमनी सी सोच का आश्रय लेकर उसने "हाँ" कहा ,
मैंने भी अपनी सोच में डूबकर उसको 'ना' कहा |
फिर उसने पूछा उस ख़ुशी का पता बतलाऊँ ?
आँखों में चमक लिए मैंने पूछा कहाँ मै जाऊँ ?
उसने मेरी ओर मुस्कराहट के साथ अंजान इशारा किया ,
उस मुस्कराहट ने मेरी ख़ुशी की सीमा को सहारा दिया |
उसने कहा ठहरो यही मै अभी आया ,
मै भी हुई प्रसन्न कि कही से उदय का साया आया |
आँखों से ओझल हो वो तनिक सी देर में मेरे समक्ष आया ,
मैंने भी अपने आपको उत्सुकता एवं व्याकुलता से घिरा हुआ पाया |
उसने कहा क्या हुआ ?
मैंने पूछा उस ख़ुशी का क्या हुआ ?
उसने आईने को आगे बढ़ाते हुए कहा ज़रा देख इसमें तेरी व्याकुल आँखें जिसमे मुदित मन दिखता है
मै भी अचंभित हुई कि कितने अरसों बाद मुझे खुद का मन ख़ुशी के आश्रित दिखता है |
अब प्रश्न उठा मेरी ओर से कि विधना का यह कैसा खेला है ?
तो उसने कहा जिस छोर पर तुम खड़ी हो वहाँ ख़ुशी का बसेरा है जिस ओर तुम बढ़ी थी वह बस माया का फेरा है |
सत्य का भान तो मुझे शायद हुआ नहीं ,
पर एक भरोसा मिला कि शायद कुछ खोया नहीं |
मेरा आज मुझ पर ही निर्भर था ,
उस घर में थी जो पहले से जर्जर था |
उसकी शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मेरे आज को मुझे लौटा दिया ,
जो कल मेरा खो जाता उसे संक्षिप्त रूप से सजा दिया |
Sunder <3
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