Musafir pratishtha blending thoughts emotions

एक पुरानी किताब से...

सर्वप्रथम इस गद्य का किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है | यह एक कल्पना है जो हर साधारण युवा पीढ़ी को प्रभावित करती है:

यूँ ही एकांत में बैठकर हमेशा की तरह किसी गहन एवं गहरी सोच में डूबी मै अपने मित्र की बताई कुछ रोचक बातें याद कर रही थी | जब उसने मेरे समक्ष बैठ किसी मुसाफिर की चर्चा छेड़ी | वह मुसाफिर जो उसके जीवन में आया जैसे कईयों का आना जाना होता है परन्तु एक छाप छोड़ गया जिससे वह एक अज्ञात सी पहचान के रूप उस मित्र के ह्रदय में स्थापित है | मै संशय में डूबी इस बारे में सोच ही रही थी कि ऐसा भी हो सकता है क्या कि कोइ अंजान व्यक्ति आपके जीवन में आ उसका आशय बदल दे, अस्तित्वविहीन होते हुए भी अपना वर्चस्व स्थापित करने में समर्थ रहे कि तभी एक अंजान सा साया मुझे छू कर निकल गया | शायद गहरी सोच में डूबी में उस साए के संपर्क में न सकी| परन्तु कुछ ही क्षणों में मेरी अर्धनिद्रा भंग हुई और मैंने अपने आपको उस साए में पाया | एक मुस्कुराहटथी उसके चहरे पर जिसका प्रत्युत्तर मेरा मुस्कुराता चहरा था | मै अनभिज्ञ थी उसके विचारों से, उसके भावों से | वह एक व्यक्ति जो की एक रहस्य था मुझे न पता था कि मेरे जीवन में एवं जीने के तौर-तरीकों में बदलाव लाएगा | मुझे ऐसे प्रभावित करेगा जैसे किसी चंचल सी स्त्री को स्थिरता प्रदान की हो | 

वह मधु बन मेरे जीवन में मिठास का संचालन करेगा जिसका स्वाद चखना शायद मेरे लिए कठिन हो | खैर, इस तरह के भावों को रोक मैंने खुद को खुद में परिवर्तित किया , “साधारण ही तो है!” यह सोच उस मुसाफिर की ओर किसी चर्चा का प्रारंभ करने हेतु कदम बढ़ाया | वही प्रथम चरण जान-पहचान फिर दूसरे चरण पर था विचारों का आदान-प्रदान | मैं साधारण थी, वह साधारण था  , पर यह सामान्य न था | अज नज़रें और जिह्वा अलग दिशा में थे |

“ क्या प्रभावित हो गयी मै???”
यह प्रश्न बार बार मेरे मानस पटल पर आ मुझे चर्चा को सुचारू रूप से चलाने में रोक रहा था | मित्र की एक और बात हवा के झोंके के समान मुझे झंकृत कर गयी , “बहाव के संग बह चलो “|
मै शांत थी, मस्त थी, मग्न थी| सर्वप्रथम खुश थी, सरिता के समान बह रही थी |
यह सिलसिला ज्यादा दिन का नहीं है यह जान कर भी , हाँ , यह जान कर भी इस मामूली से कृत में ख़ास सी बातों का अहम् सा हिस्सा बनी जा रही थी , जैसे बादलों के आने पर सूरज छिपता है न कि अस्त हो जाता है |
भान है की फिर उसी मित्र के समक्ष बैठ एक चर्चा छिड़ेगी, शायद उस चर्चा का विषय भी मुसाफिर होगा, पर इस बार ‘श्रोता’ मै नहीं वह होगा , ‘वक्ता’ वह नहीं मै रहूंगी !!!

No comments:

Post a Comment