मै आज यहाँ पर सोच समझ कर एक कहानी गाता हूँ,
मै अंजाना अलबेला सा तेरे मुख पर चढ़ जाता हूँ |
मुकर रही दुनिया जिससे, मै ऐसे गीत सुनाता हूँ,
मै आज यहाँ पर सोच समझ कर वही राग दोहराता हूँ |
मै बीच राह पर खड़ा रहा, मै कोहिनूर सा जड़ा रहा |
वह चमक वहाँ पर उज्ज्वल थी, स्थिति वहाँ पर प्रज्ज्वल थी |
बस वहाँ ठहर कर सोच समझ कर वही राग दोहराता हूँ |
मै आज यहाँ पर सोच समझ कर एक कहानी गाता हूँ |
संतुलित नहीं था भाग्य मेरा; भाव मेरे थे, भार तेरा |
विलक्षण सा मै शांत बना, ढला हुआ अपराह्न बना |
ढलते दिन में सोच समझ कर वही राग दोहराता हूँ |
मै आज यहाँ पर सोच समझ कर एक कहानी गाता हूँ |
अंजान डगर थी मेरी, लोग अलग; मै खड़ा था सबसे विलग विलग |
आशा विलीन थे नयन मेरे, नासमझ हुए यूँ नयन तेरे |
नैनों के द्वारा मैं फिर से राग वही दोहराता हूँ |
मै आज यहाँ पर सोच समझ कर एक कहानी गाता हूँ |
आधीन रहा तेरी बातों के, आधीन रहा उन हाथों के |
आधीनता की अजब परिभाषा थी, स्वाधीनता न मेरी आशा थी |
बंधन के बंधन में मै राग वही दोहराती हूँ |
मै आज यहाँ पर सोच समझ कर एक कहानी गाता हूँ |
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