क्यों खटक रहा है?
इतने बुद्धिजीवियों से मेरा पाला पड़ा है और सच मानिए तो मेरे लिए लगभग सब ही बिद्धिजीवी हुए क्योंकि मैंने अपनी बुद्धिमत्ता को पहले से ही कम आँका हुआ है।
आज के दिन की ऊर्जा को यदि कोई महसूस करे तो जीने के लिए पर्याप्त होगी, उस तिरंगे की ओर देखकर अपनी छाती चौड़ी करना, ऊँचे स्वर में 'जन गण मन' का सामूहिक गान और आँखों का यूँ ऊपर देखते देखते किसी भव्य भाव से झिलमिल हो जाना, आहा! ऐसा लगता है मानो मेरे हृदय में देश स्वयं प्रस्फुटित होकर नाच रहा है क्योंकि हमारा हृदय ही तो उसका हृदय है। ये भाव जीना कोई किसी को सिखा नहीं सकता है, यह व्यक्ति के स्व की उपज होती है।
मैंने जबसे होश संभाला है लोग कहते हैं होश खो बैठी हूँ। मुझे अपने आप से घृणा होती आई है कि कैसे मैं राजनीति से इतनी विलग हूँ, क्यों मुझे रास नहीं आते ये तौर तरीके, ये गणित विज्ञान, ये देश विदेश।
कैसे आएँगे?
मैं तो ईमान से ही कृषि हूँ, मेरा तन भी मिट्टी का ही बना है, मेरे मन में पूर्वजों के बोए सैकड़ों बीज हैं और मैंने शायद अभी फसल उगाने के नए तरीकों को अपने ऊपर अपनाया नहीं है। हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल नहीं किया है स्वयं पर।
मेरे मन में मौसम के अनुसार सब होता आया है, समय के अनुसार सब होता आया है।
रात्रि में मुझे अंधकार न मिले तो मुझे कुछ कम लगता है, सावन में बिना बारिश के मन में ऊब उठ जाती है। चलते फिरते लोगों से राम राम न हो तो लगता है ये कैसा जीना हुआ।
वैसे तो बदलाव जीवन का नियम है परंतु बदलाव की भी अपनी सीमा होती है।
जिस सरलता और सुगमता को खोकर हम लोग आगे बढ़ रहे हैं, यकीन मानिए स्वयं ही गड्ढा खोद रहे हैं, उसमें स्वयं गिर रहे हैं, स्वयं को आवाज़ लगा रहे हैं और स्वयं को सुन तक नहीं रहे हैं। शारीरिक और मानसिक गुणवत्ता का कम से कम उपयोग करते हुए हम लोग अपने आज़ाद भारत को जिस दिशा की ओर ले जा रहे हैं, मुझे तो डर लग रहा है कि आधुनिक ढंग से अब हम लोग पराधीन हो जाएँगे पुनः, या हो चुके हैं?
इस तिरंगे को देख कर मैं जितनी गौरवान्वित हूँ, क्या यह मुझे देख कर भी उतना ही गौरवान्वित होगा?
लगता तो नहीं है, और आज इतना लिख लेने के बाद मुझे और निठल्ला महसूस होने लगा है।
फिर भी प्रेम को मैं किससे ही तोल सकती हूँ, आज मेरे देश के जन्म में चार चाँद जो लगे थे तो मैं तो हँसी ख़ुशी पागलों की तरह मनाऊँगी यह दिन क्योंकि हम भारतवासी ऐसे ही तो थे, मग्न रहते थे अपने देश में, अपने परिवेश में।
परन्तु यूँ अप्रत्यक्ष कलुषित जब विवेचना पर प्रत्यक्ष हो रहा है तो ग्लानि का आभास हो रहा है।
मुझे तो हो रहा है।
पर चलिए ये सब यो चलता रहेगा।
आशा करती हूँ मेरा भय केवल भय रहे और जल्द ख़त्म हो जाए।
आशा करती हूँ कि बुद्धिजीवियों में से कोई मेरी मूढ़ बुद्धि में स्वतंत्र भारत के चिरंजीवी होने का स्वप्न पुनः जागृत करे, अंकुरित करे मेरी पुरानी ज़मीन में दो बीज आज की सफ़लता के।
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।
"To my country and its people, I wish a long life and if it means giving mine for the purpose as well."
जय हिंद ।
-प्रतिष्ठा मिश्रा
❤❤
ReplyDeleteSo true ...we need to take our country towards our vision and not by imitating other nations and take pride and pledge to keep up the glory of India ....Jai Hind ....Happy Independence day 🇮🇳❤️
ReplyDeleteHappy independence day ☺😃
ReplyDeleteGreat Work!!😀😀
ReplyDeleteAatmbhogi chintan
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