पंछी को बंधु समझ कर बैठ जाता हूँ।
रेत को शैया समझ कर बैठ जाता हूँ,
शोर को मौसम का रवैया समझ कर बैठ जाता हूँ।
मैं विचारों को स्याही समझ कर बैठ जाता हूँ,
मैं हवाओं को कागज़ समझ कर बैठ जाता हूँ।
मैं छोटी छोटी लहरों से बतलाता हूँ,
बंधु संग फड़फड़ाता हूँ,
और हवाओं पर गीत लिखता जाता हूँ।
किसी किसी शाम मैं बस ज़िंदा रहता हूँ,
किसी किसी शाम मैं ज़िन्दगी जीता जाता हूँ।
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