यह ऊँच नीच का झोल सही,
यहाँ लोग लोग में मोल सही |

यहाँ ह्रदय सही पर प्रेम नहीं ,
यहाँ देह सही पर स्नेह नहीं |

सब इस उलफ़त में बैठे हैं,
यहाँ गलत गलत या गलत सही |

विषय भी सही चर्चा भी सही ,
पर इस उलझन का हल ही नहीं |

पत्थर की मूरत ही सही ,
अल्लाह भी सही गुरु ग्रन्थ सही ;

पर पूजा में विश्वास नहीं ,
उस दुआ में कोई दर्द नहीं |
माता का आँचल भी सही ,
आँचल में तनिक ममत्व नहीं |

भांति भांति के लोग सही ,
पर इन लोगो में भेद नहीं |

विचारों में विवाद सही ,
पर सामूहिक कोई काज नहीं |

सब अपना अपना करते हैं ,
कोई हम कह दे यह सोच नहीं |

सब संगत में भेद बताते हैं ,
जहाँ कोई सत्संग नहीं |

क्यों हाथ मिला कर खड़े नहीं ,
क्यों अपवादों से लड़े नहीं ;

क्यों झंझावात में उलझ गए ,
क्यों अडिग नहीं क्यों सजग नहीं |

क्यों स्वप्न अलग से देख लिया ,
जब सपना जीने का ताव नहीं |

क्यों उच्च भविष्य का सोच लिया ,
जब भौतिकता का भान नहीं |

जो बीत गया वह सार नहीं ,
गलत का कोई भार नहीं |

मानव जीवन मिला है बन्धु ,
जो साथ सही तो बात सही |
फिर आगे की सौगात सही |

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