ytharth
एक समां वही जो बंध जाए ,
बस रमा वही जो सध जाए |
कर्त्तव्य वही पारण जिसका , 
हो कर्म वही कारण जिसका |
सब पखा पखी में उलझे हैं ,
न जाने जीवन मरण किसका |

असाध्य नहीं जो साध सकूं ,
टूटे भविष्य को बाँध सकूं |
चरण वही हो पूजन जिसका ,
भविष्य वही हो सृजन जिसका |
सब भागे दौड़े जाते हैं ,
न जाने हैं गुंजन किसका |

कोई राम राम की धुन गाए ,
कोई मेवा बिन पूजे खाए |
कोई कर्म करे , कुछ विफल करें ,
कोई कर्मों के मूल्य भरे |
सब फल की इच्छा में बैठे हैं ,
चाहे अभी मरें या बाद मरें |

कंचन की थाल  में भोजन हो ,
भोजन कैसा न मंथन हो |
साधारण थाली में स्वाद नहीं ?
सब मूल्यवान हो यही सही ?
सब मोल मोल गोहराते हैं ,
कोयले से मन में दूध दही |

प्रेम की गंगा बह ही गयी ,
राधा कृष्ण से कह ही गयी |
भले तुम सबका मान करो ,
मेरा भी कभी तुम ध्यान करो ,
कहे कृष्ण अंखियों में आंसू भर ,
तुम मुझमें हो यह मन में धरो |

संपत्ति है चल व अचल ,
मानव विचलित चाहे जल या थल |
साधारण का ही मान्य रहा ,
क्या एक स्तम्भ धन धान्य रहा ?
यदि यह विधि का विधान सही ,
तो आज और कल सामान्य रहा |

प्रारब्ध का मान क्यों रखते हो ,
क्यों यथार्थ में न टिकते हो ?
कल का सहारा लिए ,
सपनो की मदिरा पिए ,
यदि मुस्कुराना ही है तो ,
क्यों न यथार्थ में जियें |

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