shahidi pratishtha mishra blending thoughts freedom fighters india
आज मैं भारत की हवाओं से होकर गुज़रा हूँ,
मैं हर भारतवासी के वफ़ाओं से होकर गुज़रा हूँ।
मैं तो सुखदेव राजगुरु संग विहार पर निकला था,
आज़ाद भारत के ख़ुमार से निकला था।
बसंती चोला ढूंढने निकला था,
लाल चूनर ओढ़ने निकला था।
मैं अपनी माँ की गोद में पहुड़ने निकला था।
मैं तिरंगे में लिपटने निकला था।

पर मुझे यह भान हुआ है,
थोड़ा सा अनुमान हुआ है,
कि मेरी शहीदी कहीं शहीद ना हो जाए।
मेरी आप बीती कहीं ईद न हो जाए।
कहीं मैं फिरसे पिंजरे में कैद न हो जाऊँ,
कहीं फिर से फाँसी पर न चढ़ जाऊँ।
कहीं मेरा तिरंगा मुझे भूल न जाए,
कहीं मेरी मिट्टी बस मुझपर से धुल न जाए।

पर मैं फिरसे एक जंग के लिए तैयार हूँ,
मैं फिरसे आज़ादी की तरंग के लिए तैयार हूँ।
इस बार मेरा शरीर न होगा तो क्या हुआ,
मैं पन्नों पर कविता हूँ,
जन जन में उमंग के लिए तैयार हूँ।

इस बार फिरसे आग लगेगी,
आज़ादी जो थोड़ी सी आपस में बची थी,
अब फिरसे आज़ादी की कीमत बेहिसाब लगेगी।

फिरसे से मैं खुशी खुशी फाँसी चढ़ जाऊँगा,
फिरसे तिरंगे में छुप जाऊँगा।
तुम संग खेलने आया था मेरा बचपन फिरसे,
मैं फिरसे बड़ा होकर तुम्हे हर क़ैद से आज़ाद करके चला जाऊँगा।
मैं शहीद हूँ, शहीद ही कहलाऊँगा।
हँसते हँसते बारूद को भी गले लगाऊंगा।
मैया परेशान न होना,
जब तू चोटिल होगी,
मैं तुरंत चिंघाड़ता हुआ पैदा हो जाऊँगा।
बसंती साड़ी पहनाऊँगा,
लाल चूनर ओढ़ाऊंगा,
और फिरसे तुझे मुस्कुराता देख तेरी गोद में निद्रा विलीन हो जाऊँगा।

-सभी वीरों के लिए जो देश के लिए जिए और देश पर ही कुर्बान हो गए |

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