मैंने काफी ढूँढने की कोशिश की थी खुद में खुद को पर मै खुद को न मिली| मैंने काफ़ी सराहने की कोशिश की थी खुद की तराशी हुई किसी कला को पर कला ढूंढने पर भी न मिली|
सोचा किसी विशेष व्यक्ति का आलिंगन पा लूँ, आँखों में चमक और आशा लिए ढूँढा एक साया भी न मिला| आश्रय ढूँढा तो कहीं ठंड में जली आग भी न मिली| सोचा कहीं किसी रंग भरी दुनिया में विचरण कर आऊँ तो मुझे कही कोई रंग ही नहीं मिला| फिर सोचा चलो आज तो मित्र बनाते हैं तो हर नज़र से एक अजीब ही प्रश्न पाया| सब मिलते ही भूत और भविष्य में खो गए, और वर्तमान उनकी सोच में खो गया कहीं| ऐसा लगा की अपनापन कही हाथ छुड़ा कर लोगों से दूर जा बैठा है| क्यों? क्योंकि कौन संभाले इस अपनेपण को, कौन करे इसकी देख भाल| सब बस लोभी हैं आज, लोभ में खोए कही किसी कोण से देखते| मै भी क्या ही कह सकती हूँ| बस हार ही मिल रही थी| सोचा चलो परिवार है, बैठ जाते हैं, जी लेते हैं, शिकवे हैं तो क्या हुआ कुछ क्षण उसे भी पी लेते हैं| पर भूली भटकी मै वापस पहुँची तो सारी ममता दुनिया में बदल गई थी| वात्सल्य रस चिंताओं में डूब गया था| सारा प्यार धोखा बन चुका था| हर बात राजनीति बन चुकी थी, हर अदा बिकाऊ बन चुकी थी| माँ का आँचल महँगी बनारसी साड़ी बन चुका था और उसकी गोद अब उस तरह सजती ही नहीं थी| आराम ही नहीं था| सब एक दुसरे के आश्रय में थे, न न प्रेमवश नहीं| बस ओट में छुपने के लिए| कहीं भेद खुल न जाएँ| दिखावा दिख न जाए| सजावट उतर न जाए| क्या महनत की गई थी सारी चीज़ों को संवारने में, गलतियों को अडिग रह कर सुधार न कर एक नई परंपरा बनाने में|
सोचा प्रेम कर लेती हूँ, माया वश दुनिया से दूर हो जाऊँगी| थोड़ा काम के वश में रहूंगी, थोड़ा शर्मा कर संभल जाऊँगी| देखा कि अब तो लजाना और शर्माना भी एक प्रक्रिया है जो सोच कर करी जाती है| प्रीति में बंधे दो लोग प्रेम को जीते वक़्त भी सोचते हैं, सबसे अचम्भे वाली बात यह है कि जहाँ पहले इस अवस्था में लोगों की बुद्धि में पर्दा पड़ जाता था वहाँ लोग सूझ बूझ से काम लेते हैं | कुछ भी पवित्र नहीं है| आंसू निकल नहीं रहे, सकुचा रहे हैं कि कीमत न लगा ले उनकी कोई, क्रोध तो शिथिल हो गया है, आक्रोश ने तो कहा कैसे जीने दूँ| द्वन्द है अन्दर, दर्द है अन्दर| बाहर एक मुस्कान है जो जल्द ही टूट जाएगी|
बस फिर मन किया किसी नन्ही सी जान को कलेजे से लगा कर बोल डालूँ “ अब यहाँ आ गए हो तो इनमे न घुलना, खुद का अलग रंग लाओ वरना बस खोखले रह जाओगे”
सप्रेम
तुम्हारी कुछ नहीं हूँ, पर खुद से हारी हूँ|
बता रही हूँ सुन लो, तुम न मरना यहाँ मै खुद से मारी हूँ|
Areeee 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 sunder ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
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