पर तुम हो कौन और तुम्हारा पता है क्या?
चलो अपनी उलफ़त को किसी को किसी पते पर भेजते हैं।
और आज उतार देते हैं मन के मैल को एक कागज़ पर।
चलो तुम्हे पत्र लिखते हैं।
।।पत्र।।
मित्र,
तुम कैसे हो ? आशा करती हूँ कुशल हो। आज याद आई है किसी की, पता नही किसकी, तो यह पत्र तुम्हे लिख रही हूँ।
आज मौसम शाँत है, न अति शीत है न ही घाम है।
सब अपनी अपनी धुन में हैं। सबके काम से जो ध्वनि सी मुझ तक पहुँच रही है, मुझे उसकी ताल पर अपने पैरों की थाप से सामंजस्य बैठाना है। मुझे थिरकना है, तुम आ जाओ बस, शाबाशी ही दे देना ।
मुझे तुम सामने चाहिए हो, मुस्कुराते हुए। मेरे हर प्रौढ़ता से उठाए गए कदम में छुपे बचपने को तुम देख कर बस जान जाओ और मुझे बताओ कि तुम मुझे जानते हो, अभी अभी पहचाने हो पर चलो इतना ही ठीक है कि पहचानते हो। मुझे न ही किसी नदी के किनारे लहरों को गोते खाते देखना है, न ही कमरे में बंद हो अपने ही अंतर्मन को स्वप्न में हिचकोले खाते देखना है। मुझे सैर पर भी नही जाना है। मुझे कुछ बात भी नही बतानी है।
मुझे तुम तस्वीर से लगते हो जो सदियों से एक दीवार पर लगी थी, और अब नही है तो सब खाली खाली सा लगता है। तुम इतने खास नही हो, पर तुम्हारी अनुपस्थिति से कुछ कमी सी लग रही है, मुझे तुम वहीं चाहिए हो जहाँ खाली सा लग रहा है। तुम जहाँ भी हो मुझे मिल जाओ।
क्योंकि शायद यह तुम्हारी मेरी बात है, और तुम्हे तो यह पता है ही कि मेरे घर में सिर्फ़ एक ही दीवार है, और संपत्ति के नाम पर बस एक तस्वीर।
तुम ही मेरा आसमान होगे, ज़मीन भी।
माता, पिता, सखी-सहेली, मित्र, शत्रु, सूर्य और चाँद सब तुम।
तुम पता नही थे भी की नही तो लौटने को बोलना तो गलत होगा, मै तुम्हे आने को बोल रही हूँ।
दीप जलाने है, घर में अंधेरा है कबसे।
आँगन बुहारना है, गेहूँ छटकने हैं।
अब बस आ जाओ।
घर को घर कहने का मौका तो दो।
मैं बैठी हूँ बाहर चौबारे पर।
जल्दी आना।
प्रेयसी कहो या सखी।
जिस पर दिल मिलने को मचले उस रिश्ते से आ जाना, बस आ जाना।
-मित्र
Kyaa baat 👌👌
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